Tuesday, December 30, 2014

नववर्ष की शुभकामनाओ ने दिल में आग लगा दी है

नववर्ष की शुभकामनाओ ने
दिल में आग लगा दी है
हर बार की तरह अबकी भी
जानवर बनने की हसरत
फिर से जगा दी है
आधी रात को भूतो के माफिक
अंधेरो में हम चिल्लाएगे
अंग्रेजो के रहे गुलाम अबतक
हैप्पी न्यु ईयर बोल कर
तृप्त हो जाएँगें
आधुनिकता की इस चादर से
हम इतने नग्न हो जाएँगे
जानवरो की तरह बिना शर्म के
युगल जोड़ी होठ चबाएँगे
वाह रे मेरे यंगिस्तान
करो खूब भारत निर्माण
खुशियों की परिभाषा बदल दो
नशे से करो एक दुसरे का स्वागत
यही तो अंग्रेज चाहते थे
भारत की नींव में
पश्चमि सभ्यता बोते थे
मैं हर अंग्रेज के गुलाम को
हैप्पी न्यु इयर कहता हूँ
तन-मन अपना “लंदनी” बनाके
संस्कार हिन्दुस्तानी दिखाएँगे
एक दामिनी का दमन हुआ तो
इंडिया-गेट पे शोर मचाएँगे
संस्कारो का जूनून दिल में होता
दामिनी का दमन कभी ना होता
वर्ष की समाप्ति होलिका-दहन से
होती है
मैं फिर से शुभकामना दूँगा
मंगलध्वनि उच्चारण कर
नववर्ष का स्वागत करूँगा!!

Thursday, December 11, 2014

बचपन से अच्छे संस्कार देने की कोई जरुरत नहीं है

बस टैक्सी गाड़ी में बलात्कार होते हैं - इन्हें बंद करो ।
और फिर लिफ्ट बैलगाड़ी उंटगाड़ी ट्रेन हवाई जहाज शिप बोट हैलीकॉप्टर इत्यादि में बलात्कार होने लगें तो उन्हें भी बंद करो ।
और अगर बेड चटाई झूले पेड़ पर बलात्कार होने लगें तो इन सब में आग लगा दो ।
मकान की छत के फर्श पर बलात्कार होते हों तो मकान ध्वस्त कर दो ।
जो कोई भी निर्जीव वस्तु या सेवा बलात्कार होने में सहयोग करती हो उसे नष्ट कर दो ।
लेकिन बचपन से अच्छे संस्कार देने की कोई जरुरत नहीं है ।

Monday, December 1, 2014

आप देसी भाषा में पढ़ाई कर अपने ही देश में IAS नही बन सकते। अब आप किसी काम के लायक नहीं क्योंकि "अंग्रेजी" नहीं आती।

आप देहात में रहते हैं। स्थानीय सरकारी स्कूल-कॉलेज में पढ़े हैं।
आप क्षेत्रीय और देसी भाषा बोलते हैं। देसी भाषा में पढ़ाई किये हैं।
आप अंग्रेजी मीडियम वाले महंगे प्राइवेट स्कूल में नहीं पढ़ सके।
घर में इतना पैसा नहीं कि दिल्ली के मुखर्जी नगर में रह सकें।
न आप IIT के प्रोडक्ट हैं, न IIM और न ही IIMC से पास आउट।
आप सिंपल ग्रेजुएट हैं। बीए पास। चाहे किसी भी डिवीजन से......
आप बेकार हैं। आपकी योग्यता-काबिलियत किसी काम की नहीं।
आप देसी भाषा में पढ़ाई कर अपने ही देश में IAS नही बन सकते।
अब आप किसी काम के लायक नहीं क्योंकि "अंग्रेजी" नहीं आती।

Saturday, October 18, 2014

यही व्यवस्था है यही न्याय है यही एक 'सत्य है ! हाथ में इन्साफ का तराज़ू और आँखों पर 'गांधारी' वाली पट्टी ! वाह क्या बात है

आखिर ''वही'' हुआ जो होना ''तय'' था ! ''जयललिता'' जेल से ''रिहा'' हो गई ? 
क्यों की एक '' बड़ी अदालत '' को अपने से ''छोटी अदालत'' पर ''विश्वास'' नहीं है


जिस ''जज'' ने ''चार साल'' की कैद और 100 करोड़ का ''जुर्माना'' लगाया है क्या
उसमे 'काबलियत' नहीं थी हैसियत नहीं थी या उस ने ''पक्षपात'' किया था ! 
"यदि निचली अदालतों के फैसलों पर ''भरोसा'' नहीं है तो इन्हे ''बंद'' क्यों नहीं कर देते"
ये निचली अदालते सरकारी ''डिस्पेंसरियों'' की तरहा केस खराब करने के लिए है
जब यहां का डॉक्टर ''जवाब'' दे दे तो रोगी को 'बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल में ले जाओ
फिर और बड़े उसके बाद और बड़े हॉस्पिटल ले जाओ ! गाँठ में पैसा होना चाहिए !
यही हाल हमारी अदालतों का है !
बड़े बड़े वकील/बैरिस्टर जिनकी पहुँच न्यायधीशों के ड्राइंगरूम/चेंबर तक होती है
सफलता उनके ''कदम चूमती'' है
! बड़े से बड़ा 'अपराधी, भ्र्ष्टाचारी और दुराचारी
सलाखों के बाहर नज़र आता है !
यही व्यवस्था है यही न्याय है यही एक 'सत्य है ! .....
 हाथ में इन्साफ का तराज़ू और आँखों पर 'गांधारी' वाली पट्टी ! वाह क्या बात है ..

Tuesday, September 30, 2014

वर्त्तमान में नारी स्वयं ही स्वरुप व गौरव भूल गई है

वर्त्तमान में नारी स्वयं ही अपना यह
स्वरुप व गौरव भूल गई है। स्वतंत्रता व
मॉडर्नाइजेशन की अंधाधुंध होड़ में
पाश्चात्य का अंधानुकरण करने में लगी है।

मॉडलिंग, एक्टिंग आदि ऐसे
व्यवसायों का चयन कर रही है, जहाँ उसे
भोग्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
सादगी एवं पवित्रता के भूषण उससे छीन
लिए जाते हैं। सौन्दर्य प्रसाधनों से उसे
लादकर इस रूप में प्रस्तुत किया जाता है
कि वह वासना की देवी प्रतीत होती है।

हर व्यक्ति उसे कामुक दृष्टि से देखता है।
हमें तो लगता है
कि नारी की अस्मिता को भंग करने का यह
एक गहरा षड्यन्त्र चल रहा है।

प्रकट रूप में सिनेमा, मीडिया व साहित्य-
वासनाओं को उभारने के माध्यम बन गए हैं।
और नारी इस कुचक्र का रहस्य न समझकर,
एक कठपुतली बनके रह गयी है। ... अपने शील,
लज्जा आदि गुणों को ताक पर रखकर देह-
प्रदर्शन करने में गौरव अनुभव कर रही है।

नतीजतन, समाज का पतन हो रहा है।

Saturday, August 16, 2014

कितनी धार्मिक किताबें पढ़ना चाहिए?

कितनी धार्मिक किताबें पढ़ना चाहिए? अपने घर में उपलब्ध रामायण, महाभारत, भागवत, गीता, पुराण और अनगिनत धार्मिक कथाओं को पढ़ने का अवसर तो 10-11 वर्ष की उम्र में ही मिल चुका था। उन से संतुष्ट न होने पर बाइबिल पढ़ी, फिर क़ुरआन भी पढ़ी। किसी ने भी संतुष्टि प्रदान नहीं की। कोई किताब लूट के खिलाफ नहीं बोलती। बस लुटेरे को लूटने दो, तुम खुद अच्छे इंसान बननेे की कोशिश करो, लुटेरे को उस का दंड ईश्वर देगा। बस उस काल्पनिक ईश्वर के भरोसे लूट का ये कारोबार सदियों से चला आ रहा है। कोई किताब लूट के कारोबार को खत्म करने का रास्ता नहीं बताती। ऐसा लगता है ईश्वर दुनिया भर के लुटेरों का सरगना है जो लगातार इस बात का इंतजाम करता रहता है कि किसी तरह लूटेरे बचे रहें और इंसानों को ठगते रहें। इन्सान बस इसी तरह स्वर्ग, नर्क और परलोक के स्वप्निल नशे में डूबे लुटते रहें।

Tuesday, July 29, 2014

आखिर क्या हो गया है हमारे मीडिया और समाज में ?

क्रीम लगाओ लड़की पटाओ

* पाउडर लगाओ
लड़की पटाओ

* डीयोडरंट लगाओ
लड़की पटाओ

* दिमाग की बत्ती जलाओ
लड़की पटाओ

* मंजन करो और
ताज़ा साँसों से
लड़की पटाओ

* एंटी डेनड्रफ शैम्पू लगाओ लड़की पटाओ

* कोई भी चिप्स खाओ
लड़की पटाओ

* फोन में फ्री स्कीम
का रीचार्ज कराओ
और लड़की पटाओ

* हद तो तब हो गयी जब
पुरुषों के
अंतर्वस्त्रों से
भी लड़की पटरही है
इनके विज्ञापनों में खास
बात ये है की आपको कुछ
करना नही है सिर्फ इन
चीजों को इस्तेमाल
करो लड़की खुद आपके
पास चल कर आएगी।

आखिर क्या हो गया है हमारे मीडिया और
समाज में ?

क्या ज़िंदगी का एक
ही मकसद है
लड़की पटाओ ?

लगता है भारत में सभी उत्पादों के
विज्ञापनों का एक
ही उद्देश्यहै
'लड़की पटवाना',.....!?!

Tuesday, July 15, 2014

किशोर वय व लड़के-लड़कियां सामाजिक मूल्यों, नैतिकताओं और वर्जनाओं से उदासीन और लापरवाह होते चले जा रहे हैं...

माडर्न लाइफ स्टाइल " की गिरफ्त में कसमसाने लगी है। किशोर वय व लड़के-लड़कियां सामाजिक मूल्यों, नैतिकताओं और वर्जनाओं से उदासीन और लापरवाह होते चले जा रहे हैं। दूसरे शब्दों में जीवन पर इसका संक्रमण तीव्र गति से फैल रहा है


पश्चिमी मुखौटे के अंदर समाज का वह विद्रूप चेहरा ज्यादा सक्रिय हो उठा है, जो घिनौना है, काम-वासना से भरा हुआ है। शहर के गली-कूचे इस संक्रमण से प्रभावित देखे जा सकते हैं। शराब-सिगरेट पीना, हलकी मादक दवाएं लेना, चुप-चुप सैर सपाटा, अचानक स्कूल से गायब हो जाना, साइबर कैफे में इंटरनेट पर अश्लीलता से सराबोर होना और बार आदि में जाना और जाने के लिए झूठ बोलना, ऐसे परिधानों का चयन करना, जिन्हें वे घर में भी पहनने का साहस जुटा नहीं पाते । यह सब फैशन के नाम कुप्रचलन बन गया है। इसका निवारण आवश्यक अन्यथा वह दिन दूर नही जब यह धरती गंदगी से इतना भर जाएगी कि , यही जीते जी नर्क हो जाएगी । 

Wednesday, July 9, 2014

उस दिन "बुलेट ट्रैन" की सोचना....

" समय की माँग - ईमानदार नीयत, दृढ़ इच्छाशक्ति और देशसेवा की भावना "
अभी हाल में 14.2% रेल किराये में बढ़ोतरी से मात्र 8000 करोड़ मिलेंगे ,.... पर इससे पहले से दबा-कुचला आम आदमी का जीना और मुहाल हो गया है।
क्या सरकार नहीं जानती कि देश में फैले व्यापक भ्रष्टाचार से रेलवे भी अछूती नहीं है ,.... ट्रेनों में तिल भर जगह नहीं, बाहर और ऊपर तक भर कर चल रही हैं ,.... फिर रेलवे घाटे में क्यों है ? ,.... अकेला "आयरन ओर ढुलाई" घोटाला ही पच्चास हज़ार करोड़ रूपए का है।
मतलब साफ़ है, सबसे पहले, देश से भ्रष्टाचार जड़मूल से मिटाना होगा ,.... जनलोकपाल, स्वराज, नापसन्दी, भ्रष्टों को वापिस बुलाने के बुनियादी अधिकार जनता को देने होंगे ,.... चुनाव, पुलिस, न्यायिक प्रणाली और जांच एजेन्सीयां स्वायत कर सुधारनी होंगी ,.... तभी देश और हर विभाग फायदे में आएगा ,.... फिर किराया बढ़ाने के बजाये घटाना पडेगा ,.... पानी मुफ्त मिलेगा ,.... बिजली, यातायात और सब वस्तुएं एकदम सस्ती होंगी ,…. हर बच्चे को अनिवार्य मुफ्त शिक्षा मिलेगी ,.... हर आम आदमी को रोटी कपडा, मकान और रोज़गार मिलेगा ,.... अंतिम आम आदमी तक सब सुखी होंगे।
जिस दिन, देश आत्म-निर्भर और अंतिम आम आदमी सुख-संपन्न हो जाए ,.... रेल का जनरल डिब्बा साफ़, इसका शौचालय ठीक और हर यात्री को पूरी सीट मिले ,.... उस दिन "बुलेट ट्रैन" की सोचना।
इसलिए, समय की माँग है - ईमानदार नीयत, दृढ़ इच्छाशक्ति और देशसेवा की भावना ! अन्यथा बाकी सब छलावा है।
जय हिन्द !

Saturday, June 28, 2014

एक महत्वपूर्ण सूचना, मर्जी हो तो मानो बर्ना समय मनवा देगा ?

एक महत्वपूर्ण सूचना, मर्जी हो तो मानो बर्ना समय मनवा देगा ? 
धोखे से भी थाना और कोर्ट फरयादी बनकर न जाओ,भारत में समय से न्याय नहीं मिल सकता?
मिलती है जलालत और केवल तारीख ?खर्च होता है जीवन का महत्वपूर्ण समय और अकूत धन?
अगर विपक्छी धनी और दवंग है तो ले दे के मामले को किसी भी तरह निवटा लो? 
थाना और कोर्ट दवंग से तुम्हे कुछ भी नहीं दिला सकेगा,?भारत में बेसर्मी की हद तक सम्बेदनाहीन हो चुकी है विधायिका,कार्यपालिका और न्यायपालिका ?
क्या इसी को कहते लोकतंत्र और कानून का राज?
विधायका,जज हो या प्रशासन-पुलिस जनता के पेसे से बेतन लेते हें और एश कर रहे ?फिर मालिक और(मी लार्ड) मेरे ईस्वर किस कारण ?सहमत हे तो शेएर कीजिय

Monday, June 23, 2014

क्या हम लोगो से तर्कसंगत एवं व्यवहारिक सोच को अपनाने की अवधारणा रखते हैं

अवधारणा (ऐजंप्शन, अनुमान) है कि बादाम खाने से बुद्धि बढ़ती है |

पैसे वाले लोग खूब बादाम खाते हैं और अपने बच्चों को खिलाते हैं |

जब भी सेकेन्डरी - कॉलेज - यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं

हम लोग कब से तर्कसंगत एवं व्यवहारिक सोच को अपनाने की अवधारणा रखते हैं के रिजल्ट आते हैं - देखा गया है कि टॉप 10 में साधारण आर्थिक स्थिति वाले घरों के बच्चे होते हैं |

गणित - तर्क एवं लेटरल थिंकिंग (पूर्वानुमान - भविष्यद्रष्टा ?) आधारित कम्प्यूटर साइन्स में बहुत दिमाग लगता है |

जापान - कोरिया और उन मुल्कों ने जहां न बादाम पैदा होते हैं और न ही यह अवधारणा है कि बादाम खाने से बुद्धि बढ़ती है - उन देशों के लोगों ने कम्प्यूटर साइन्स में बहुत तरक्की की है |

विश्व के महान चिंतकों - विचारकों - गणितज्ञों - वैज्ञानिकों की जीवनी में कहीं नहीं लिखा मिलेगा कि उन्होने बादाम खा कर अपनी बुद्धि बढ़ायी |

मूल रूप से बादाम का वृक्ष किस देश का है ?

क्या बादाम के मूल देश के लोगों में से कोई महान चिंतक - विचारक - गणितज्ञ - वैज्ञानिक हुआ है ?

बादाम के मूल देश के लोग किस विद्या में अग्रगण्य हैं ?

हम लोग मिथ्या अवधारणाओं को कब तक त्याग देने की आशंका रखते हैं ? 

Sunday, June 22, 2014

बदलाव कभी कल नही होता

हम समाज में बदलाव जरुर लाना चाहते है। लेकिन कोई भी खुद से इसकी शुरुवात नही करना चाहता।
हर कोई एक दुसरे पर टाल देना चाहता है। नही टालना नही है। स्वम एक बदलाव बनिये।
अपनी सोच अपने कर्म बदलिए।
ऐसे ही जिन्दगी मत जियो।
आगे बढ़ो। नेक जीवन जियो।
और याद रखो बदलाव कभी कल नही होता।
आज और अभी में होता है।