Sunday, December 20, 2015

भारत मे सब्सिडी अथवा खैरात के पीछे छिपी सरकार की मंसा को जानिये.

भारत मे सब्सिडी अथवा खैरात के पीछे छिपी सरकार की मंसा को जानिये ।
यदि मंत्री न्यायशील न हो तो किसी भी देश का साम्राज्य न्यायशील नहीं हो सकता।
बहुत समय पहले की बात है।
किसी राज्य में कोई राजा के दरबार में एक व्यक्ति जो कि बहुत गरीब था उपस्थित हुआ।
उस गरीब नागरिक की आँख में प्रगाढ़ आंसू थे, उसने रोते हुए उस राजा से अपनी गरीबी की व्यथा का वर्णन किया।
राजा कुछ संवेदनशील था द्रवित हो उठा।
राजा ने आदेश दिया कि इस नागरिक को पर्याप्त रोजगार का साधन तुरंत सुलभ कराया जाए।
तभी राज्य के वित्तमंत्री ने राजा के कान में कुछ बुदबुदाते हुए कोई विशेष मन्त्र फूंका।
और राजा को संबोधित करते हुए कहा-
"राजन्..!
इस गरीब नागरिक को रोजगार का 'साधन' नहीं बल्कि इसे 'धन' प्रदान किया जाय।
इससे नागरिक को तुरंत राहत मिलेगी।"
यह सुनकर वह गरीब नागरिक बहुत प्रसन्न हुआ।
और राजा की जय जयकार करने लगा।
उसे तत्काल कुछ धन देकर विदा किया गया।
गरीब नागरिक धन पाकर प्रसन्नता पूर्वक चला गया।
तब राजा ने मंत्री से पूछा -
"मंत्री जी, आपने इस गरीब नागरिक को रोज़गार के 'साधन' देने के स्थान पर 'धन' देने का परामर्श क्यों दिया..?
जबकि 'साधन' के स्थान पर 'धन' देना अथवा 'रोज़ी' के स्थान पर 'रोटी' देना कभी न्यायसंगत नहीं है।
साधन शाश्वत है धन क्षणिक है...!
रोज़ी शाश्वत है रोटी क्षणिक है....!
रोज़गार के साधन से वह नागरिक स्वतः अपने लिए धन या रोटी सदैव कमाता रहता और उसकी गरीबी स्वतः दूर हो जाती।"
तभी धूर्त मंत्री ने कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए कहा-
"महाराज, यदि आप इस गरीब नागरिक को साधन दे देते तो यह स्वावलंबी और स्वाधीन हो जाता। दुबारा आपके पास कभी लौटकर नहीं आता। आपके दरबार में इसका आना, रोना और गिड़गिड़ाना सदा के लिए समाप्त हो जाता।
अतः आपको इस पर दया करने, इसकी मदद करने, इसे दान देने की जरुरत ही नहीं रह जाती।
यह स्वयं समृद्ध हो जाता।
तब आपकी जय जयकार यह कभी नहीं करता।
सुखी और समृद्ध प्रजा कभी राजा के वशीभूत नहीं रहती।
प्रजा को दास या गुलाम बनाये रखने में वह राजा समर्थ नहीं हो सकता जो प्रजा को धन के स्थान पर साधन देता है अथवा रोटी के स्थान पर रोज़ी प्रदान करता है।
यदि आर्थिक साधन प्रजा के पास होंगे तो आर्थिक उत्पादन पर भी प्रजा का स्वामित्व स्थापित हो जायेगा और प्रजा समृद्ध हो जायेगी।
इसलिए महाराज प्रजा को रोज़गार के साधन नहीं धन प्रदान करना ही राजकीय कूटनीति है।
और यह आर्थिक रहस्य प्रजा को कभी ज्ञात न हो इसके लिए अधिकाँश प्रजा को अशिक्षित रखना भी आवश्यक है।
और यदि प्रजा में से कुछ लोग गलती से शिक्षित हो जायें तो उन्हें विशेष सुविधाएँ देकर अपने पक्ष में शामिल कर लेना चाहिए।
महाराज, वे स्वयं को विशेष (VIP) मानकर प्रजा से दूर हो जायेंगे और धूर्ततापूर्वक हमारा ही साथ देने लगेंगे।
महाराज ध्यान रहे कि विद्याविहीन पशुतुल्य प्रजा को ही दास बनाकर रखा जा सकता है। अन्यथा नहीं।
अतः राजवंशी लोग जनता के लिए जान तो दे सकते हैं किन्तु जानकारी नहीं।
ज्ञान ही मोक्ष प्रदान करने वाला है।
'सा विद्या या विमुक्तये।'
विद्या मुक्तिदाता है।
विद्या से प्रजा को दूर रखने वाला राजा सदैव निष्कंटक राज्य करता है। पीढ़ी दर पीढ़ी उसका राज्य कायम रहता है।
अतः महाराज अपने राजकीय विद्यालय को भी भोजनालय में रूपांतरित करवाइये।
पिता को रोज़ी नहीं उसके बच्चों को विद्यालय में रोटी दीजिये।
आपका साम्राज्य अक्षुण्ण बना रहेगा।
महाराज..!
शिक्षा और रोज़गार को चालाकी से नियंत्रित कीजिए।
प्रजा को दास बनाये रखने में ये दो अस्त्र ही पर्याप्त हैं।
महाराज..!
आपके राज्य में जब तक अज्ञान का अँधेरा कायम रहेगा, तभी तक आपका राज्य कायम रहेगा।
आपकी जय हो..!
आपका राज्य कायम रहे...!!
इस छोटी सी कहानी को आप 68 सालों की आजादी के वावजूद वर्तमान दशा के परिप्रेक्ष्य में समझ सकते हैं ।
रवि पाल

Monday, February 23, 2015

पढा-लिखा होना और जागृत होना दोनो में अंतर है

पढा-लिखा होना और जागृत होना दोनो में अंतर है । किताबों को पढ लेने से,या डिग्रियां हासील कर लेने से कोई जागृत नहीं कहा जा सकता । हर शिक्षित व्यक्ति जागृत ही हो,ऐसा नहीं है । जागृति का प्रथम सिद्धांत है÷ अपने दोस्त की पेहचान होना । जागृति का दुसरा सिद्धांत है÷ अपने दुश्मन की पेहचान होना । जागृती का तिसरा सिद्धांत है÷ अपनी ताकत और कमजोरी मालुम होना । जागृति का चौथा सिद्धांत है÷ दुश्मन की ताकत और कमजोरी मालुम होना । और जागृति का पांचवां सिद्धांत है÷ अपने महापुरुषों का इतिहास मालुम होना । यह पांच बातें अगर आपको मालुम है,और आप अनपढ भी हो,फिर भी आप जागृत कहे जा सकते हो । और अगर आप को ये पांच बातें नहीं मालूम हैं,और आप शिक्षित भी हो,फिर भी आप जागृत नहीं हो । आप डॉक्टर, वकील इंजिनियर,प्रोफेसर,IPS,IAS,हो सकते हो । मगर आप जागृत नहीं कहे जा सकते।

Tuesday, December 30, 2014

नववर्ष की शुभकामनाओ ने दिल में आग लगा दी है

नववर्ष की शुभकामनाओ ने
दिल में आग लगा दी है
हर बार की तरह अबकी भी
जानवर बनने की हसरत
फिर से जगा दी है
आधी रात को भूतो के माफिक
अंधेरो में हम चिल्लाएगे
अंग्रेजो के रहे गुलाम अबतक
हैप्पी न्यु ईयर बोल कर
तृप्त हो जाएँगें
आधुनिकता की इस चादर से
हम इतने नग्न हो जाएँगे
जानवरो की तरह बिना शर्म के
युगल जोड़ी होठ चबाएँगे
वाह रे मेरे यंगिस्तान
करो खूब भारत निर्माण
खुशियों की परिभाषा बदल दो
नशे से करो एक दुसरे का स्वागत
यही तो अंग्रेज चाहते थे
भारत की नींव में
पश्चमि सभ्यता बोते थे
मैं हर अंग्रेज के गुलाम को
हैप्पी न्यु इयर कहता हूँ
तन-मन अपना “लंदनी” बनाके
संस्कार हिन्दुस्तानी दिखाएँगे
एक दामिनी का दमन हुआ तो
इंडिया-गेट पे शोर मचाएँगे
संस्कारो का जूनून दिल में होता
दामिनी का दमन कभी ना होता
वर्ष की समाप्ति होलिका-दहन से
होती है
मैं फिर से शुभकामना दूँगा
मंगलध्वनि उच्चारण कर
नववर्ष का स्वागत करूँगा!!

Thursday, December 11, 2014

बचपन से अच्छे संस्कार देने की कोई जरुरत नहीं है

बस टैक्सी गाड़ी में बलात्कार होते हैं - इन्हें बंद करो ।
और फिर लिफ्ट बैलगाड़ी उंटगाड़ी ट्रेन हवाई जहाज शिप बोट हैलीकॉप्टर इत्यादि में बलात्कार होने लगें तो उन्हें भी बंद करो ।
और अगर बेड चटाई झूले पेड़ पर बलात्कार होने लगें तो इन सब में आग लगा दो ।
मकान की छत के फर्श पर बलात्कार होते हों तो मकान ध्वस्त कर दो ।
जो कोई भी निर्जीव वस्तु या सेवा बलात्कार होने में सहयोग करती हो उसे नष्ट कर दो ।
लेकिन बचपन से अच्छे संस्कार देने की कोई जरुरत नहीं है ।

Monday, December 1, 2014

आप देसी भाषा में पढ़ाई कर अपने ही देश में IAS नही बन सकते। अब आप किसी काम के लायक नहीं क्योंकि "अंग्रेजी" नहीं आती।

आप देहात में रहते हैं। स्थानीय सरकारी स्कूल-कॉलेज में पढ़े हैं।
आप क्षेत्रीय और देसी भाषा बोलते हैं। देसी भाषा में पढ़ाई किये हैं।
आप अंग्रेजी मीडियम वाले महंगे प्राइवेट स्कूल में नहीं पढ़ सके।
घर में इतना पैसा नहीं कि दिल्ली के मुखर्जी नगर में रह सकें।
न आप IIT के प्रोडक्ट हैं, न IIM और न ही IIMC से पास आउट।
आप सिंपल ग्रेजुएट हैं। बीए पास। चाहे किसी भी डिवीजन से......
आप बेकार हैं। आपकी योग्यता-काबिलियत किसी काम की नहीं।
आप देसी भाषा में पढ़ाई कर अपने ही देश में IAS नही बन सकते।
अब आप किसी काम के लायक नहीं क्योंकि "अंग्रेजी" नहीं आती।

Saturday, October 18, 2014

यही व्यवस्था है यही न्याय है यही एक 'सत्य है ! हाथ में इन्साफ का तराज़ू और आँखों पर 'गांधारी' वाली पट्टी ! वाह क्या बात है

आखिर ''वही'' हुआ जो होना ''तय'' था ! ''जयललिता'' जेल से ''रिहा'' हो गई ? 
क्यों की एक '' बड़ी अदालत '' को अपने से ''छोटी अदालत'' पर ''विश्वास'' नहीं है


जिस ''जज'' ने ''चार साल'' की कैद और 100 करोड़ का ''जुर्माना'' लगाया है क्या
उसमे 'काबलियत' नहीं थी हैसियत नहीं थी या उस ने ''पक्षपात'' किया था ! 
"यदि निचली अदालतों के फैसलों पर ''भरोसा'' नहीं है तो इन्हे ''बंद'' क्यों नहीं कर देते"
ये निचली अदालते सरकारी ''डिस्पेंसरियों'' की तरहा केस खराब करने के लिए है
जब यहां का डॉक्टर ''जवाब'' दे दे तो रोगी को 'बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल में ले जाओ
फिर और बड़े उसके बाद और बड़े हॉस्पिटल ले जाओ ! गाँठ में पैसा होना चाहिए !
यही हाल हमारी अदालतों का है !
बड़े बड़े वकील/बैरिस्टर जिनकी पहुँच न्यायधीशों के ड्राइंगरूम/चेंबर तक होती है
सफलता उनके ''कदम चूमती'' है
! बड़े से बड़ा 'अपराधी, भ्र्ष्टाचारी और दुराचारी
सलाखों के बाहर नज़र आता है !
यही व्यवस्था है यही न्याय है यही एक 'सत्य है ! .....
 हाथ में इन्साफ का तराज़ू और आँखों पर 'गांधारी' वाली पट्टी ! वाह क्या बात है ..

Tuesday, September 30, 2014

वर्त्तमान में नारी स्वयं ही स्वरुप व गौरव भूल गई है

वर्त्तमान में नारी स्वयं ही अपना यह
स्वरुप व गौरव भूल गई है। स्वतंत्रता व
मॉडर्नाइजेशन की अंधाधुंध होड़ में
पाश्चात्य का अंधानुकरण करने में लगी है।

मॉडलिंग, एक्टिंग आदि ऐसे
व्यवसायों का चयन कर रही है, जहाँ उसे
भोग्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
सादगी एवं पवित्रता के भूषण उससे छीन
लिए जाते हैं। सौन्दर्य प्रसाधनों से उसे
लादकर इस रूप में प्रस्तुत किया जाता है
कि वह वासना की देवी प्रतीत होती है।

हर व्यक्ति उसे कामुक दृष्टि से देखता है।
हमें तो लगता है
कि नारी की अस्मिता को भंग करने का यह
एक गहरा षड्यन्त्र चल रहा है।

प्रकट रूप में सिनेमा, मीडिया व साहित्य-
वासनाओं को उभारने के माध्यम बन गए हैं।
और नारी इस कुचक्र का रहस्य न समझकर,
एक कठपुतली बनके रह गयी है। ... अपने शील,
लज्जा आदि गुणों को ताक पर रखकर देह-
प्रदर्शन करने में गौरव अनुभव कर रही है।

नतीजतन, समाज का पतन हो रहा है।