वर्त्तमान में नारी स्वयं ही अपना यह
स्वरुप व गौरव भूल गई है। स्वतंत्रता व
मॉडर्नाइजेशन की अंधाधुंध होड़ में
पाश्चात्य का अंधानुकरण करने में लगी है।
मॉडलिंग, एक्टिंग आदि ऐसे
व्यवसायों का चयन कर रही है, जहाँ उसे
भोग्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
सादगी एवं पवित्रता के भूषण उससे छीन
लिए जाते हैं। सौन्दर्य प्रसाधनों से उसे
लादकर इस रूप में प्रस्तुत किया जाता है
कि वह वासना की देवी प्रतीत होती है।
हर व्यक्ति उसे कामुक दृष्टि से देखता है।
हमें तो लगता है
कि नारी की अस्मिता को भंग करने का यह
एक गहरा षड्यन्त्र चल रहा है।
प्रकट रूप में सिनेमा, मीडिया व साहित्य-
वासनाओं को उभारने के माध्यम बन गए हैं।
और नारी इस कुचक्र का रहस्य न समझकर,
एक कठपुतली बनके रह गयी है। ... अपने शील,
लज्जा आदि गुणों को ताक पर रखकर देह-
प्रदर्शन करने में गौरव अनुभव कर रही है।
स्वरुप व गौरव भूल गई है। स्वतंत्रता व
मॉडर्नाइजेशन की अंधाधुंध होड़ में
पाश्चात्य का अंधानुकरण करने में लगी है।
मॉडलिंग, एक्टिंग आदि ऐसे
व्यवसायों का चयन कर रही है, जहाँ उसे
भोग्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
सादगी एवं पवित्रता के भूषण उससे छीन
लिए जाते हैं। सौन्दर्य प्रसाधनों से उसे
लादकर इस रूप में प्रस्तुत किया जाता है
कि वह वासना की देवी प्रतीत होती है।
हर व्यक्ति उसे कामुक दृष्टि से देखता है।
हमें तो लगता है
कि नारी की अस्मिता को भंग करने का यह
एक गहरा षड्यन्त्र चल रहा है।
प्रकट रूप में सिनेमा, मीडिया व साहित्य-
वासनाओं को उभारने के माध्यम बन गए हैं।
और नारी इस कुचक्र का रहस्य न समझकर,
एक कठपुतली बनके रह गयी है। ... अपने शील,
लज्जा आदि गुणों को ताक पर रखकर देह-
प्रदर्शन करने में गौरव अनुभव कर रही है।
नतीजतन, समाज का पतन हो रहा है।